मंदिर का इतिहास
भगवान शिव को समर्पित श्री श्री 108 बाबा मुक्तेश्वरनाथ मंदिर एक हिन्दू धर्म-स्थल है जो बिहार राज्य के मधुबनी जिला अन्तर्गत्त अंधराठाढ़ी प्रखंड के देवहार ग्राम में स्थित है। मिथिलांचल (बिहार) में वैसे तो अनेक बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान हैं जो इतिहासकारों तथा पुरातत्त्वविदों द्वारा बिल्कुल उपेक्षित है लेकिन उन स्थलों के विषय में प्रचलित कथानक परम्पराएं एवं लोकमान्यताएं उनके अतीत को उजागर करती हैं।
इसी तरह के स्थलों में मधुबनी जिला अंतर्गत अंधराठाढ़ी प्रखंड के देवहार ग्राम स्थित श्री श्री 108 बाबा मुक्तेश्वरनाथ महादेव मंदिर जो कि मिथिलांचल में मुक्तेश्वर स्थान के नाम से प्रसिद्ध है एक बड़ा ही ऐतिहासिक एवं पुरातत्त्विक धार्मिक स्थल है। ऐसा माना जाता है कि मुक्तेश्वर स्थान से जहाँ एक ओर मिथिलांचल की प्रसिद्द पंजी प्रथा जुड़ी हुई है वहीं दूसरी ओर पुरातत्त्विक महत्त्व की अनेकानेक कलाकृतियाँ भी शोधार्थियों को अपनी ओर आकृष्ट कर रही हैं।
महामहोपाध्याय परमेश्वर झा ने अपनी प्रसिद्द पुस्तक "मिथिलातत्त्व विमर्श" में देवहार ग्राम स्थित श्री श्री 108 बाबा मुक्तेश्वरनाथ महादेव मंदिर (मुक्तेश्वर स्थान) का उल्लेख करते हुए इसे मिथिलांचल के पंजी प्रबन्ध से संबद्ध माना है। उनके अनुसार सतघरा ग्राम जो कि मुक्तेश्वर स्थान से करीब एक किलोमीटर पश्चिमोत्तर में है वहां पर गंगौर मूल के ब्राह्मण हरिनाथ शर्मा रहते थे। हरिनाथ शर्मा बड़े प्रसिद्ध, दार्शनिक एवं स्मृति रचिता थे उनकी पत्नी प्रतिदिन देवहार ग्राम में स्थित बाबा मुक्तेश्वर नाथ महादेव के दर्शनार्थ जाया करती थीं।
एक दिन गांव में अफवाह फैल गई की एक चंडाल ने उक्त महिला की सतीत्त्व को भग्न कर दिया किन्तु उस महिला का कहना था की वह चंडाल मंदिर में आया लेकिन एक साँप ने उसे काट लिया और वह मर गया और मैं पवित्र हूँ। कथन पर विश्वास न कर समाज के लोगों ने निर्णय लिया कि उनका सतीत्त्व की परीक्षा लिया जाय। इस परीक्षा में धर्माध्यक्ष पंडित पीपल के पत्ते पर हाथ में आग की गोला देकर "नाहं चांडाल गामिनी" लिखकर उस महिला के तलहत्थी पर रखा गया पर महिला का तलहत्थी जलने लगा जिससे पुनः लोगों ने उसे पापिन कहना शुरू कर दिया परंतु वह महिला अपने उपर लगाए गए गलत आरोपों से छुटकारा पाने हेतु राजदरबार में गुहार लगाई।
प्रधान धर्माधित रानी ने अपने समक्ष पुनः उस महिला के हाथ में पीपल के पत्ते पर आग का गोला रखने की व्यवस्था की किन्तु इस बार "नाहं स्वपति व्यतिरिक्त चांडाल गामिनी" लिखा गया इस बार हाथ नहीं जला फलतः उन्हें निर्दोष साबित किया गया। सतीत्व परीक्षण की उक्त प्रक्रिया ने एक तथ्य की ओर स्पष्ट संकेत किया की उस महिला के पति हरिनाथ शर्मा स्वयं ही चांडाल हो गए हैं। इस अवसर पर अनुसंधान कराया गया जिसके उपरांत पता चला कि उनका विवाह अनाधिकार में हुआ है जिससे उन्हें चण्डालत्व प्राप्त हो गया है इस निर्णय के पश्चात् ही पंजी व्यवस्था को सुदृढ़ करने की उक्त सन 1310 ई. के आसपास का कही गयी है जिस समय मिथिलांचल पर महाराजा हरिसिंह देव का शासन स्थापित था।
स्थानीय परंपरा के अनुसार महाराजा हरिसिंह देव ने इस व्यवस्था में विशेष लिखी तथा मुक्तेश्वर स्थान में ही अपना दरबार लगाया था। उनकी पत्नी विदुषी लखिमा ठकुराईन ने भी इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्थानीय लोगों में एक कथा और भी प्रचलित है (जो किवंदति है) कि परशुराम जी का आश्रम भी यहाँ स्थित था और वो यहाँ पर तपस्या करते थे जिसका प्रमाण 2008 में भी मिट्टी खुदाई के दौरान परशुराम जी के स्वरुप का एक अंग प्राप्त हुआ है जो वर्त्तमान में मंदिर में उपस्थित है।
ऐसा माना जाता है कि मुक्तेश्वरनाथ मंदिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व हुआ था। पुरातत्त्विक दृष्टि से मुक्तेश्वर स्थान एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थल है। यहाँ का शिवलिंग बड़ा ही अनोखा है। कुछ दशक पूर्व एक सन्यासी के द्वारा इसके खुदाई का काम करवाया गया था तो देखा की यह शिवलिंग नीचे जाने पर अत्यंत मोटा एवं विशाल होता गया जिससे खुदाई का काम बंद कर पुनः भरकर पूजा योग्य बना दिया गया।
शिवलिंग को देखने से लगता है कि यह गुप्त कालीन है। मिट्टी खुदाई के दौरान एक अत्यंत ही सुन्दर गणेश एवं पार्वती की प्रतिमा भी मिली जो पार्वती मंदिर में अभी भी स्थापित है।