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आरती संग्रह

॥ श्री गणेश जी की आरती ॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूस की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश...!
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
सूर श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश...!
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

॥ श्री हरि विष्णु जी की आरती ॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, स्वामी दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
दीनबन्धु दुःखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे...!
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप (कष्ट) हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे...!

॥ श्री सत्यानारयण जी की आरती ॥

जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
रत्‍‌न जडि़त सिंहासन, अद्भुत छवि राजै।
नारद करत निराजन, घण्टा ध्वनि बाजै॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दर्श दियो।
बूढ़ा ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, तिनकी विपत्ति हरी॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर-स्तुति कीन्हीं॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
भाव भक्ति के कारण, छिन छिन रूप धरयो ।
श्रद्धा धारण कीन्हीं, तिनको काज सरयो॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
ग्वाल बाल संग राजा, वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों, दीनदयाल हरी॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल, मेवा।
धूप दीप तुलसी से, राजी सत्यदेवा॥
ॐ जय लक्ष्मी रमणा...!
श्री सत्यनारायण जी की आरती, जो कोई नर गावै।
ऋद्धि सिद्ध सुख संपत्ति, सहज रूप पावे॥
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी,जन पातक हरणा॥

॥ श्री रामचन्द्र जी की आरती ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
श्री राम श्री राम....
कंदर्प अगणित अमित छबि, नव नील नीरद सुन्दरं।
पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
श्री राम श्री राम....
भजु दीनबंधु दिनेश दानवदै त्यवंशनिकंदनं। रघुनंद आंनद कंद कोशल चंद दशरथनंदनं।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
श्री राम श्री राम...
सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं।
आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं।। श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं
इति वदित तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं।।
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं। नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं।। श्री राम श्री राम...

॥ श्री हनुमान जी की आरती ॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरवर काँपे।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाये॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥
लंका जारि असुर संहारे।
सियाराम जी के काज सँवारे॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे।
लाये संजीवन प्राण उबारे॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥
पैठि पताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाईं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥
सुर नर मुनि जन आरती उतरें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
आरती कीजै हनुमान लला की॥
जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे॥
लंक विध्वंस किये रघुराई।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

॥ श्री शिव जी की आरती ॥

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा...!

॥ श्री कृष्ण जी की आरती ॥

ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे।
भक्तन के दुख टारे पल में दूर करे।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी।
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
कर कंचन कटि कंचन श्रुति कुंड़ल माला।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
दीन सुदामा तारे, दरिद्र दुख टारे।
जग के फ़ंद छुड़ाए, भव सागर तारे।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे।
पाहन से प्रभु प्रगटे जन के बीच पड़े।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
केशी कंस विदारे नर कूबेर तारे।
दामोदर छवि सुन्दर भगतन रखवारे।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे।
फ़न फ़न चढ़त ही नागन, नागन मन मोहे।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...!
राज्य विभिषण थापे सीता शोक हरे।
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे।।
जय जय श्री कृष्ण हरे...! ॐ जय श्री कृष्ण हरे।

॥ श्री कुंज बिहारी की आरती ॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की...
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

॥ श्री शनि देव जी की आरती ॥

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव...!
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव...!
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव...!
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव...!
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव...!

॥ श्री बृहस्पति देव की आरती ॥

जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे। जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा...!

॥ श्री दुर्गा जी की आरती ॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
जय अम्बे गौरी...।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।
जय अम्बे गौरी...।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।
जय अम्बे गौरी...।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।
जय अम्बे गौरी...।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।
जय अम्बे गौरी...।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।
जय अम्बे गौरी...।
चण्ड मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
जय अम्बे गौरी...।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।
जय अम्बे गौरी...।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
जय अम्बे गौरी...।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।
जय अम्बे गौरी...।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
जय अम्बे गौरी...।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।
जय अम्बे गौरी...।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।

॥ श्री पार्वती जी की आरती ॥

जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता।।
जय पार्वती माता...!
अरिकुलापदम विनाशिनी जय सेवक त्राता।
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता।।
जय पार्वती माता...!
सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा।
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा।।
जय पार्वती माता...!
सतयुग रूपशील अतिसुन्दर नाम सती कहलाता।
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता।।
जय पार्वती माता...!
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता।
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा।।
जय पार्वती माता...!
सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता।
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता।।
जय पार्वती माता...!
देवन अरज करत तब चित को लाता।
गावन दे दे ताली मन में रंगराता।।
जय पार्वती माता...!
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता।
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता।।
जय पार्वती माता...!

॥ श्री सरस्वती जी की आरती ॥

ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभवशालिनि, त्रिभुवन विख्याता।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता।।
चंद्रवदन पदमासिनी कृति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेज धारी।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुटमणि सोहे, गल मोतियन माला।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता
देवि शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
बैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता
विद्यादान प्रदायिनि ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान की निरखा, जग से नाश करो।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता
धूप, दीप, फल, मेवा, ओ मां स्वीकार करो।
ज्ञान चक्षु दे माता, जग निस्तार करो।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता
मां सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावै।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावै।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता
ॐ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता, सदगुण वैभवशालिनि, त्रिभुवन विख्याता।।
जय जय सरस्वती माता, ॐ जय सरस्वती माता।।

॥ श्री लक्ष्मी जी की आरती ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जगमाता।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
दुर्गा रुप निरंजनि, सुख संपत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशनी, भव निधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्‍गुण आता।
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।
उँर आंनद समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...!
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

॥ श्री रामायण जी की आरती ॥

आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया पी की॥ गावत ब्राह्मादिक मुनि नारद। बालमीक विज्ञान विशारद। शुक सनकादि शेष अरु शारद। बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ गावत वेद पुरान अष्टदस। छओं शास्त्र सब ग्रन्थन को रस। मुनि मन धन सन्तन को सरबस। सार अंश सम्मत सबही की॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ गावत सन्तत शम्भू भवानी। अरु घट सम्भव मुनि विज्ञानी। व्यास आदि कविबर्ज बखानी। कागभुषुण्डि गरुड़ के ही की॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ कलिमल हरनि विषय रस फीकी। सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की। दलन रोग भव मूरि अमी की। तात मात सब विधि तुलसी की॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

॥ श्री गंगा जी की आरती ॥

ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
ॐ जय गंगे माता...!
चंद्र सी जोत तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पडें जो तेरी, सो नर तर जाता॥
ॐ जय गंगे माता...!
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥
ॐ जय गंगे माता...!
एक ही बार जो तेरी, शारणागति आता।
यम की त्रास मिटा कर, परमगति पाता॥
ॐ जय गंगे माता...!
आरती मात तुम्हारी, जो जन नित्य गाता।
दास वही सहज में, मुक्त्ति को पाता॥
ॐ जय गंगे माता...!
ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥ ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता।

॥ श्री सन्तोषी माता आरती ॥

जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता। अपने सेवक जन की, सुख सम्पति दाता ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ सुन्दर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो । हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ गेरू लाल छटा छबि, बदन कमल सोहे । मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर दुरे प्यारे । धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ गुड़ अरु चना परम प्रिय, तामें संतोष कियो । संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही । भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मोही ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ मंदिर जग मग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई । विनय करें हम सेवक, चरनन सिर नाई ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै । जो मन बसे हमारे, इच्छित फल दीजै ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ दुखी दारिद्री रोगी, संकट मुक्त किए । बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ ध्यान धरे जो तेरा, वांछित फल पायो । पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्द आयो ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ चरण गहे की लज्जा, रखियो जगदम्बे । संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ॥ सन्तोषी माता की आरती, जो कोई जन गावे । रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति, जी भर के पावे ॥ जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता । अपने सेवक जन की, सुख सम्पति दाता

॥ श्री खाटू श्याम बाबा जी की आरती ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे । तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे । खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे । सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे । भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे । सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे । कहत भक्त-जन, मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे । निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे ॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे । ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे। खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे ।


मंदिर का पता

देवहार, अंधराठाढ़ी, मधुबनी,
बिहार, पिनकोड 847224, IN

समय - सारणी

प्रातः 05:00 AM - अपराह्न 12:00 PM
अपराह्न 04:00 PM - रात्रि 09:00 PM
प्रातःकालीन महाश्रृंगार एवं महाआरती 05:30 AM
संध्याकालीन महाश्रृंगार एवं महाआरती 08:30 PM

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